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पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥

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जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥

भजन: शिव शंकर को जिसने पूजा उसका ही उद्धार हुआ

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शिव भजन

अर्थ- हे गिरिजा पति हे, दीन हीन पर दया बरसाने वाले भगवान शिव आपकी जय हो, आप सदा संतो के प्रतिपालक रहे हैं। आपके मस्तक पर छोटा सा चंद्रमा शोभायमान है, आपने कानों में नागफनी के कुंडल डाल रखें हैं।

अर्थ: हे प्रभू आपके समान दानी और कोई नहीं है, सेवक आपकी सदा से प्रार्थना करते आए हैं। हे प्रभु आपका भेद सिर्फ आप ही जानते हैं, क्योंकि आप अनादि काल से विद्यमान हैं, आपके बारे में वर्णन नहीं किया जा सकता है, आप अकथ हैं। आपकी महिमा का गान करने में तो वेद भी समर्थ नहीं हैं।

बुधवार – आप दीर्घायु तथा सदैव निरोगी रहते हैं.

कंचन बरन बिराज read more सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।।

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

O Superb Lord, consort of Parvati That you are most merciful . You usually bless the inadequate and pious devotees. Your stunning sort is adorned with the moon on your own forehead and on your ears are earrings of snakes’ hood.

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